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वो लड़का अलमारी में रहता है
वो लड़का अलमारी में रहता है
अपने हाथ ठीक कर, ऐसे मत चल, दूर हाथ, भीड़ में वो मुझे कहते
मैंने टोका उसे कई बार, बोला मुझसे नहीं हो रहा
अकेले रहेगा ज़िंदगी भर, क्यों इस गेनेस के पीछे अपने loved ones खो रहा है
मुझे पता है तेरी पिछली ज़िंदगी थी ख़ुश, पर तू था क्या?
झूठी थी वो ज़िंदगी, और झूठ कब तक रहता है
वो लड़का अलमारी में ही रहता है
ग़ुस्सा तो वो हो गया, फिर रोया फूट-फूट के
कहता खो दूँगा सब कुछ जो भी है मुझे प्यार
नहीं जी पाऊँगा, ये सब नहीं मुझे गवारा
फिर मैंने उसे चुप कराया, लेटा अपनी गोद में
बोला उसका — "ये ज़िंदगी नहीं मिलेगी दोबारा"
"तू क्यों इन लोगों के चक्कर में अपनी ज़िंदगी नरक बना रहा है,
मेरी जान, मरने के बाद कोई वापस नहीं आ रहा है"
जी इसे अपने terms पे, नहीं तो कोसेगा सबको और खुद को भी
झूठा साथ तो होगा, पर तू तन्हा होगा जब होगी आख़िरी साँस पे
बोला वो — "तूने नहीं देखा गे लोगों के साथ क्या हो रहा"
कभी छम्या, कभी छक्का, भद्दे comments करते, उनके लिए इस्तेमाल
"तू कैसे सहता है ये सब?" ये बात लगती है उसको बहुत कमाल
"मैं नहीं संभाल पाऊँगा लोगों के ये ताने"
उसकी आँखों का दरिया बह रहा था
वो लड़का — "रहने दो मुझे अलमारी में" कह रहा था
धक्का भी दिया उसने, दी कुछ गंदी गालियाँ भी
बोला दूर रह मुझसे, अब हम नहीं मिल पाएँगे कभी
बोला — "छोड़ दे मुझे मेरे हाल पे"
ढीठ था मैं भी, लेके आया कुछ चाय की प्यालियाँ
बना दे चाय, नहीं चाहिए मुझे तेरी बकवास गालियाँ
थोड़ा सा मुस्कराया वो, बोला — "पागल है तू"
मैंने कहा — "अब क्या करूँ, सिर्फ तेरे लिए ही तो हूँ"
फिर आँसू पोंछे उसके मैंने, बोला — "चल मूवी लगा"
Cuddles करते सो गया मैं, फिर उसने चादर ओढ़ी और वो अलमारी की ओर
...और निकल पड़ा
मेरी उससे एक शिकायत —
नहीं पकड़ता वो हाथ जब भी हम हो बाहर
सोचता हूँ — क्या मैं भी हूँ उसके लायक?
क्या ग़लत हूँ, जो मैं छोड़ आया अपनी अलमारी को?
उसके साथ तो रहकर लगता है, कि कभी कहेगा —
"साथ रहना है तो तुम भी अलमारी में चलो"
चलो छोड़ो इन बातों को
हर घंटे उसका ही ख़्याल रहता है
पर क्या मैं भी हूँ उससे प्यारा?
ये सवाल हमेशा रहता है
वो लड़का अलमारी में क्यों रहता है?
चलो कुछ देर करता हूँ इंतज़ार
कुछ देर बाद शायद ना करे वो भीड़ में मुझसे अजनबियों वाला व्यवहार
उस अलमारी से रोने की आवाज़ आई थी
"भगवान ठीक कर दो मुझे" — उसने गुहार लगाई थी
अब उसको कौन बताए, भगवान ने कोई ख़राब चीज़ कभी बनाई थी?
ख़राब बातें हैं लोग, उससे — मन जाता है, भोला है बहुत
मुझसे पूछता है — "तू रोता नहीं है?"
मैं तो नहीं... मेरे तकिए से पूछ ले
वो बताएगा कि इसका कोई हिसाब नहीं है
अपने हालात से मजबूर था,
वो लड़का इस सब में बेक़सूर था
एक ख़्वाहिश है जमने की — उस प्यारे से लड़के को डुबाने के
छोड़ दी थी उसने आस,
Sadly अब मिली है फुर्सत — खुद को बचाने की
अब तो बग़ावत होगी
क्या ज़रूरत थी उसका दिल दुखाने की?
‘Sahil’ दिख गया है उसे,
अब बारी है — जमाने को मुँह छुपाने की